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हश्र मेरी शायरी का यूँ न कर, बिगडी रुत है मेरी, बस

हश्र मेरी शायरी का यूँ न कर, बिगडी रुत है मेरी, बस हर तरफ से
सांस मिल रही, वजूद फिर खिल रहा,
तेरा साथ हो न हो पर तु,

मेरे शब्दों को यूं ठुकराके गर्क न कर
शायरी का मेरी तू, यू हश्र न कर #हश्रबुरा#मन-की-कही
हश्र मेरी शायरी का यूँ न कर, बिगडी रुत है मेरी, बस हर तरफ से
सांस मिल रही, वजूद फिर खिल रहा,
तेरा साथ हो न हो पर तु,

मेरे शब्दों को यूं ठुकराके गर्क न कर
शायरी का मेरी तू, यू हश्र न कर #हश्रबुरा#मन-की-कही