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मैं कितना आत्म विभोर था ना कहीं भी कोई शोर था जो

मैं कितना आत्म विभोर था 
ना कहीं भी कोई शोर था
जो घर में जाकर बैठ गया
कितना ये शातिर  चोर था
मैं कितना......
चिंतित बस इस बात से हूं
अपनो के मीठे घात से हूं
चूक हुई अपनों से थी
जबकी चारो ओर अजोर था
मैं कितना......
वो आज भी मेरे अपने हैं
दिखलाते मीठे सपने है
ना कहते कभी भूल कर भी
अधियारा मन में घनघोर था
मैं कितना.......
जीवन बीच अधर में है
कोई दिखता नहीं सफ़र में है
ऐ"सूर्य" उजाला कब होगा
कुछ गीला नयन का कोर था
मैं कितना.......

©R K Mishra " सूर्य "
  #आत्म विभोर