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"मटकी, ले लो मटकी" कहानी अनुशीर्षक में पढ़े (मटकी

"मटकी, ले लो मटकी"

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(मटकी means clay pot) #nojoto #short #kahaani #firsttimetry 

सुबह विदा ले चुकी थी और तपती दोपहरी अपना आक्रोश दिखा रही थी।
मन विचलित सा था और दिल हताश। बहुत जगह रिज्यूमे मेल कर चुकी थी, पर कही से कोई पॉजिटिव रिस्पांस आ ही नही रहा था, शायद किसी जॉब के लायक थी ही नहीं मै। कोश रही थी बैठे-बैठे खुद को और ऊपरवाले को। शिकायते कर रही थी भगवान से उनकी ही कि हे भगवान जी शायद कुछ जल्दी जल्दी में बना दिया मुझे..सबको आपने कुछ ना कुछ टैलेंट दिया है लेकिन शायद मुझे कुछ भी देना भूल गए आप।

इतने में डोर बैल बजी और कानों में एक आवाज सुनाई दी.."मटकी, ले लो मटकी"। मै बाहर तो नही गयी क्योंकि मुझे कुछ लेना नहीं था। लेकिन, मै उसे बाहर के कमरे की खिड़की से अपलक देखती रही, पता नही क्या, पर कुछ तो था उसकी आवाज में। याद दिला दू फिर से, समय था दोपहर का, तेज़ चिलचिलाती धूप और रेगिस्तानी लू के थपेड़े।
वो आगे बढ़ता रहा और कॉलोनी के हर घर का दरवाजा खटखटाता और यही आवाज लगाता "मटकी, ले लो मटकी"। कोई ना दरवाजा खोल रहा था ना कोई बाहर आ रहा था। उसने फिर अगला दरवाजा खटखटाया और इस बार दरवाजा खुला, कोई बाहर भी आया और इस बार उसकी मेहनत रंग लाई। दोपहर के 2 बजे उसके दिन की पहली बोनी हो चुकी थी।
"मटकी, ले लो मटकी"

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(मटकी means clay pot) #nojoto #short #kahaani #firsttimetry 

सुबह विदा ले चुकी थी और तपती दोपहरी अपना आक्रोश दिखा रही थी।
मन विचलित सा था और दिल हताश। बहुत जगह रिज्यूमे मेल कर चुकी थी, पर कही से कोई पॉजिटिव रिस्पांस आ ही नही रहा था, शायद किसी जॉब के लायक थी ही नहीं मै। कोश रही थी बैठे-बैठे खुद को और ऊपरवाले को। शिकायते कर रही थी भगवान से उनकी ही कि हे भगवान जी शायद कुछ जल्दी जल्दी में बना दिया मुझे..सबको आपने कुछ ना कुछ टैलेंट दिया है लेकिन शायद मुझे कुछ भी देना भूल गए आप।

इतने में डोर बैल बजी और कानों में एक आवाज सुनाई दी.."मटकी, ले लो मटकी"। मै बाहर तो नही गयी क्योंकि मुझे कुछ लेना नहीं था। लेकिन, मै उसे बाहर के कमरे की खिड़की से अपलक देखती रही, पता नही क्या, पर कुछ तो था उसकी आवाज में। याद दिला दू फिर से, समय था दोपहर का, तेज़ चिलचिलाती धूप और रेगिस्तानी लू के थपेड़े।
वो आगे बढ़ता रहा और कॉलोनी के हर घर का दरवाजा खटखटाता और यही आवाज लगाता "मटकी, ले लो मटकी"। कोई ना दरवाजा खोल रहा था ना कोई बाहर आ रहा था। उसने फिर अगला दरवाजा खटखटाया और इस बार दरवाजा खुला, कोई बाहर भी आया और इस बार उसकी मेहनत रंग लाई। दोपहर के 2 बजे उसके दिन की पहली बोनी हो चुकी थी।