इस दुनिया की फितरत है कैसी जाने लगी हूं मैं , सही और गलत का फर्क अब पहचानने लगी हूं मैं । यूं तो बातें करती हूं मैं अधिकारों और आंदोलनों की लेकिन, शोषण और पोषण की बातों में अंतर पहचाने लगी हूं मैं। जो करते हैं सौदा चंद पैसों से सपनों का मेरे , उन सौदागरों की नियत-ए- खुशबू पहचानने लगी हूं मैं। आज तो तड़पी हूं जितना भी आसमां छूने के लिए, उस तड़प के पीछे छुपे हाथों को पहचाने लगी हूं मैं। खुश हूं लेकिन एक खामोश सा डर है मेरे दिल में, खामोश ख़ौफ़ से सहमी धड़कनों को पहचानने लगी हूं मैं। बदले की आग दहक चुकी है मेरे दिल-ओ-दिमाग में अब शायद, इसलिए तो अब दुश्मनों और दोस्तों में फर्क पहचानने लगी हूं मैं। 📝 ओजस्वी शर्मा intention#poem#ojaswi Sharma#nojoto #reading