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ये बूंदें गिरती हुई, कह रही हैं बार बार। जब भी गिर

ये बूंदें गिरती हुई, कह रही हैं बार बार।
जब भी गिरें हम, तो तुम भीगो बार बार ।।

निकलो घर से कोई तुम्हारी प्रतीक्षा में है,
आओ! मिलो, बैठो चाय पीयो बार बार।।

वृक्षों के कोमल पत्तों पर मोती जैसी बूंदें हैं,
निहारो छू कर देखो मन मोहेंगी बार बार।।

वर्षा ऋतु के समय जलमग्न हुईं गलियां, 
एकाध घंटा बाद,जाने की कहना बार बार।।

"मनु" हम तो भीगते ही हैं भीगते ही रहेंगे,
तुम आओ तो फिर और भीगेंगे बार बार।।

©मनोज कुमार झा "मनु"
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