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मैं और मेरी नजर , गोंधुली में जब भी टहलतें हैं अक

मैं और मेरी नजर , गोंधुली में
जब भी टहलतें हैं

अक्सर आसमान से बाँतें करतें हैं
गूँज कर पवित्र  प्राथनायें ,

पहुँचती तो होंगी त्रिकालदर्शि तक ?

जो आज धुप में घुलते -घुलतें 
अस्त हो  जायेंगा। 

कल वही फुंटकर पहाड़ियों से 

किरणों में त्वरित हो 

 जिवन जोत जलायेगा !
मैं और मेरी नजर ,

अक्सर आसमान से बाँतें करतें हैं

©vandana Singh
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