वो वक़्त ना-मुनासिब था call के लिए, तो कोई और वक़्त बता देते call के लिए। हमने इतंज़ार किया सुबह से शाम तलक, पर तुम्हे एक लम्हा न मिला call के लिए। हम उदास परेशान रहे तुमसे बात के लिए, तुम ज़रिया न निकाल सके call के लिए। जद्दोजहद करते तो निकल आता जरूर, हुई ही न कोशिश कल भी call के लिए। बिखरकर एकबार कल फिर लौटना पड़ा, तरस गए फिर कल तुम्हारी call के लिए। नाराज़ शायर Vk Viraz ©V.k.Viraz