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खयालों की मुंडेर पर आई स्मृतियां, कभी बहस नहीं करत

खयालों की मुंडेर पर आई स्मृतियां,
कभी बहस नहीं करती, 
वो उसे दुनिया की नजरों से बचाने के लिए,
सुलह कर लिया करती हैं;
ठीक बादलों की तरह-
क्योंकि जिस सूरज ने बादलों को अपना घर-बार,
 छोड़ने पर मजबूर कर दिया, 
उसी को जलने से बचाने के लिए,
वो ढप लेता है सूरज की पूरी परिधि. 
#ओजस #ओजस
खयालों की मुंडेर पर आई स्मृतियां,
कभी बहस नहीं करती, 
वो उसे दुनिया की नजरों से बचाने के लिए,
सुलह कर लिया करती हैं;
ठीक बादलों की तरह-
क्योंकि जिस सूरज ने बादलों को अपना घर-बार,
 छोड़ने पर मजबूर कर दिया, 
उसी को जलने से बचाने के लिए,
वो ढप लेता है सूरज की पूरी परिधि. 
#ओजस #ओजस