खयालों की मुंडेर पर आई स्मृतियां, कभी बहस नहीं करती, वो उसे दुनिया की नजरों से बचाने के लिए, सुलह कर लिया करती हैं; ठीक बादलों की तरह- क्योंकि जिस सूरज ने बादलों को अपना घर-बार, छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसी को जलने से बचाने के लिए, वो ढप लेता है सूरज की पूरी परिधि. #ओजस #ओजस