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ख़्वाबों के आंगन में तेरे संग खेलती हूंँ, ख़्वाबों

ख़्वाबों के आंगन में तेरे संग खेलती हूंँ,
ख़्वाबों के झूले में तेरे संग ही झूलती हूँ।

हकीकत में तुम्हारे आने की कोई उम्मीद नहीं,
ख़्वाब टूट ना जाए इसलिए आंँखें नहीं खोलती हूंँ।
 इस विषय पर मुक्तक शैली में रचना करें|

सबसे अच्छी रचना को अगले दिन उदाहरण के तौर पर पेश किया जायेगा|

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ख़्वाबों के आंगन में तेरे संग खेलती हूंँ,
ख़्वाबों के झूले में तेरे संग ही झूलती हूँ।

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ख़्वाब टूट ना जाए इसलिए आंँखें नहीं खोलती हूंँ।
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