ऊपरवाला ए खुदा जब से मेरे तार तुझसे जुड़े हैं, मोह भंग सा हो गया हम न जाने कहाँ चल पड़े है। वो सब सोच के रखता है किसी सोची समझी साज़िश की तरह पहले से। जिसे तुम आदत समझते हो वो उसके हुक्म का हिस्सा हो पहले से। बचपन से तुम्हारा वो एक ही तकिया, क्लास में उसी सहेली के साथ बैठना और रेस्तरां मे कोने की वही तिकोनी-टेबल पर बैठना। यही सोच के रखा था खुदा ने भी कि एक दिन उसी तकिये में मुंह छुपाकर रोना है, उसी सहेली के पास वो सारे राज़ दफ्नाने पड़ेंगे और रेस्तरां के उसी कोने वाली तिकोनी-टेबल पर अकेले तन्हाई के लम्हें एक कोल्ड काफी के साथ ठण्डे बस्ते में डालने पड़ेगें। मुझसे जब खुदा ने फेहरिस्त मांगी अपनी priorities की हमने भी आदतन एक दो तीन पर १ गम लिखा फिर २.शराब लिखी और तीसरा उसकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया । और इसी तीसरी choice पर उस त्रिनेत्र से तार जुड़े।