[मात-पिता] तेरी एक ऊंगली पर, कितना हमें भरोसा है। जिसे पकड़ कर हमने, सम्महलना सीखा है ।। तू मेरे लिए मन्दिर, और मदीना है । मेरे लिए हर मोती, तेरे तन का पसीना है।। खुदा भी अगर कभी जो पूछे यह मुझसे। कहूं अगर मांग ले कुछ, तो तू क्या मांगेगा मुझसे।। तब मैं कुछ न कहकर, शांत खड़ा रह जाऊंगा। फिर पीछे से एक आवाज जो आई, चुप-चाप मैं चला जाऊंगा।। कैसे चले कोई नाव, जब संग पतवार ही नहीं।। हालत कुछ यूं ही होगी, जिनके सर पर तेरा हाथ नहीं।। परमात्मा की तलाश में यह आत्मा दर-कदर भटकती है। जबकि मात-पिता के रुप में, सदा ही वो संग रहती है।। ATUL MISHRA