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खुशियों की रवानियों पे गम के पहरे देखें है, मैंने

खुशियों की रवानियों पे  गम के पहरे देखें है,
मैंने बर्बादी के मंजर बड़े गहरे देखे हैं,
तुम गैरों की कह रहे हो मुंह में राम बगल में छुरी,
मैंने अपनों के हाथों में खंजर देखे हैं,
रोज गम की घटाएं बरसती है दिल की जमी पर,
फिर भी प्यार के खेत मेंने बंजर देखें है।

©Innocent
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