वो जमाना भी कितना जुदा था, जब ना ईमेल था, ना टेलीफोन था । बातों का सिलसिला, खतों से होता था, इंसान में तब कितना सब्र और सुकून था । याद है मुझे, पापा का , दादी को खत लिखना, हाल चाल, पढ़ाई लिखाई, वो सब लिखना, जवाब में दादी के खत का, इंतज़ार करना, पापा के दफ्तर से घर आने पर उसे फिर पढ़ना । एक बार पापा के कहने पर, दादी को, मैंने खत लिखा, अपनी सुंदर लेखनी में, मैंने सब लिखा , पापा के मन में, जैसे मेरे शब्दों ने घर कर लिया, मेरे लिखे हुए खत का उन्होंने, हर किसी से ज़िक्र किया, हर छोटी सी बात भी, तब बड़ी थी, हर बात की तब अहमियत थी, वो दुनिया भी, कितनी अलग थी !! नमस्ते लेखकों! अप्रैल का महीना कविता लेखन महीना है| इस महीने में आप हमारे साथ कविता लेखन का अभ्यास करे। रोज़ एक कविता लिखने का संकल्प ले, अपनी लेखनी को सुधारे, और हमारे साथ अपनी अनोखी शैली को निखारे। हमारा आज का शब्द है खत | चलिये, एक कदम बढ़ाते है बेहतर लेखनी की ओर।