क्या लिखूँ की वो परियो का रूप होती है ! या कड़कती ठण्ड में सुहानी धूप होती है ! वो होती है चिड़िया की चहचाहट की तरह , या फिर निच्चल खिलखिलाहट, वो अक्क्षर जो न हो तो वर्णमाला अधूरी है ! वो जो सबसे जयादा जरूरी है ! ये नहीं कहूँगा कि वो हर वक़्त सांस सांस होती है ! क्यूकि बेटिया तो सिर्फ अहसास होती है #shailesh_lodha #thepoetry_project