મારું ગામડું याद बहुत आता हे गाँव, बरगद दादा की वह छाँव। ठंडी ठंडी हवा मचलती, आंगन मेरे वह आती। मैदानो मे चरती गाये, इधर दौड़ती उधर दौड़ती।। रोज सुबह चिड़िया का गुंजन, मीठी मीठी तान सुनाती। ऐसी मीठी ध्वनि सुनकर, पुलकित हो जाता हे मन।। चोगानो मे रोज खेलना, गिल्ली डंडे, कंचे आदि। अवारों की तरह झगड़ना, लुफ्त का मौज उठाते थे।। बेलो से वह खेती करना, तालाबों का वह सौंदर्य। महिलाओ का पानी भरना, बड़ा ही मनमोहक गाँव।। पगडंडी पर चलते चलते, पतली पतली गलियों मे। थकते नही थे पाँव मेरे, ऐसा था वह मेरा गाँव। याद बहुत आता हे गाँव, बरगद दादा की वह छाँव। ©bharat singh mer #गाँव_की_छाँव #गाँव_की_यादें #गाँव_मेरा #गाँव_मेरा_मुझे_बहुत_याद_आता_है #village