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इनसान तो एक पंछी की भांति होता हैं। उसे जितना अपन

इनसान तो एक पंछी की भांति होता हैं। 
उसे जितना अपने मन की इच्छाओं 
के आसमान उड़ने दिया जाएं, 
वह उतना ही ऊंचाइयों को छूता जाता हैं।

©दिव्यांशी त्रिगुणा "राधिका"
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