एक था बचपन , एक लड़कपन जिंदगी कितनी प्यारी थी हर सपना पूरा करने की अपनी भी तैयारी थी जीवन ने जब मोर यूँ कांटा पनघट पर हम फिसल गए बचपन और लड़कपन त्यागा , पैसा कमाने निकल गए अपना दाओं चला जीवन ने , अबकी अपनी बारी थी आँख का आँशु दिख न जाए ऐसी जिम्मेदारी थी। ~अंकित दुबे #bachapn#jimmedari