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नफरत की आग ************** नफरत की आग की लहर, आसमां

नफरत की आग
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नफरत की आग की लहर,
आसमां   को   छू   रही ‌ है।
तनिक  हवा  के  झोंकों से,
मन  भी अब  टूट रही  है।।

प्यार भरा दिल अब है कहां,
सारे  पैसों  से  जूट  रहा  है।
खून का प्यासा है आज हर आदमी,
दुनिया   अपने   को   लूट  रहा  है।।

अपनापन और यह रिश्ते नाते,
बन   कर    भी   टूट    रहा  है।
यह  आत्मा  भी  जो  है तन में,
खुद  से यह अब रूठ रहा है।।

ईर्ष्या द्वेश  और  यह  नफरत,
खुले  मैदान  में  जूट  रहा  है।
सच और इनाम  बेचारा  क्या करें,
दामन में सिमट कर घर को फूट रहा है।।
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प्रमोद मालाकार कि कलम से
21.01.1994

©pramod malakar
  #नफरत की आग।

#नफरत की आग। #कविता

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