ये नार रहती परेशान,अपनी सुंदरता पर करती बड़ा अभिमान, करती रोज पिया जी क़ी जेब खाली,रचती हैं बड़े बड़े अभियान, पत्नियों के रोज के नाटक से बेचारे पति हो जाते रोज परेशान, लगा मस्का पति को करती ख्वाहिश पूरी,कहती तुम मेरे भगवान, रोज साड़ियों की लगाती दुकान,आज शॉपिंग, कल पार्लर जाना, कहिं थोड़ी सी भी मोटी न हो जाऊं,बार बार दर्पण की निहारना, रोज सन्डे को किटी पार्टी हैं होती,काम न करना अच्छा है बहाना, नटखट सी चुलबुली पति की ये रानी,बस पति को ही हैं सताना, कुछ भी हो नाटकबाजी में ये सबकी नानी हैं यही घर की महारानी हैं मत सताना कभी इनका दिल,यही तो मां लक्ष्मी स्वरूप पटरानी हैं, अपने हिस्से का भी दे देती हैं, ये दिल की बड़ी रुहानी मस्तानी हैं, सब पति की जान है होती,नटखट होती बच्चों सी इनकी शैतानी हैं, नखरे इनके हीरोइन को भी फेल करे,खुद को विश्व सुंदरी बताती हैं, लगा महँगे क्रीम पाउडर बेचारे गंजे पति के सामने बड़ी इतराती हैं, कहती तू बुड्डा मैं जवान नार, कर नोकझोंक बड़ा ही सताती हैं। एक बार कैप्शन अवश्य पढ़ें. #kavyamela #competitionwriting साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता (प्रतियोगिता-5)