नज़रिया अब ख़ुद का नहीं, ज़माने का नज़रिया बदलने का वक्त है। वक्त अब ख़ुद को बदलने का नहीं, बरसों पुरानी रीतियों को बदलने का है। वो रिश्ते जो आज कुछ यूँ उलझ गए हैं, कि कोई हल नहीं दिखता। अब उन रिश्तों के बदलने का नहीं, रिश्तों में थोड़ा नज़रिया बदलने का वक्त है। यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️ • PROFOUND WRITERS द्वारा दी गई इस चुनौती को पूरा करें। 💎 • अपने दिल की भावनाओं को शब्दों में पिरोकर इस अद्भुत पृष्ठभूमि की सुंदरता बढ़ाएं।