जो तोड़ते हैं दो रोटी के लिए दिन रात पहाड़ बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए करते हैं हर काम, चाहे जितनी कम मिले पगार लेकिन आज की मतलबी दुनिया को बजाय दिलाने को इनको रोजगार फायदा उठाते हैं, कराते हैं बेगार और तो और इस दुनिया ने शिक्षा को भी बाजार बना डाला, गरीबों के हथियार पर अपना अधिकार जमा डाला। किसी भी देश की उन्नति तभी सम्भव है या कोई भी देश तभी आत्मनिर्भर हो सकता है जब उस देश का कमजोर वर्ग भी शिक्षित हो।। उसी पर लिखी गई एक पिता के संघर्ष को दर्शाती कविता जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए हर परिस्थितियों में अडिग है लेकिन कुछ सर्वार्थी लोगों ने शिक्षा को बाजार बना दिया है, अब शिक्षा भी उन्ही को मिलेगी जो धनवान हों। अतः उस गरीब पिता का संघर्ष भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में नाकाफी साबित हो रहा है।।