सगाई नहीं हुई.. एक व्यंग्य कविता खबरों में था, नज़रों में था, नक्षत्रों में था, लग्नों में था, अपनों में था, फिर भी; सगाई नहीं हुई ! रंगीन था, हसीन था, प्रवीण था,बेहतरीन था, ताज़ातरीन था, फिर भी; सगाई नहीं हुई ! उस भ्रमित परी को, परिवार नहीं, होशियार नहीं, जानदार नहीं, शानदार नहीं, प्यार नही, दुलार नहीं, एक ग़ुलामाना.., कुमार चाहिए जो; माँ बाप से दूर हो, घरेलू मजदूर हो, ख़र्चे में मशहूर हो, शहरी नूर हो, मासूम खजूर हो, कुंवारा सा मजबूर हो, बेसबब चकनाचूर हो ! मांगों में, खामियों में, अपर्याप्त अंतर था, भयप्रद तृष्णा से बच गया; सगाई नहीं हुई ! *(ग़ुलामाना - ग़ुलाम जैसा) डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich #Humour #HasyaKavita #sagai #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #achievement