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बचपन के आईने में सुंदर सा चेहरा देखा,मैंने हर वक्त

बचपन के आईने में सुंदर सा चेहरा देखा,मैंने हर वक्त माँ के आंचल में प्यार का पेहरा देखा,खुसी मेरे होने की माँ की आंखों में थी,बाबा ने जब ये खबर फ़ोन पे सुनी थी,लोगो मे आस पास बस ये कानाफूसि हुई कि लड़की हुई है,मगर माँ बाबा के लिए मानो प्यार की उमंग जगी है,भाई ने भी खुसी के आँशु बहाये, मेरे बड़े होने तकमेरे लिए  सुंदर सपने सजाये,घर की सबसे प्यारी लाडली थी,नटखट मन भावली थी,अब थोड़ा बडी हुई तो भाई की उंगली और माँ बाबा का सहारा लेके चली,घर के आंगन में मानो जैसे खिल रही हो कोई सुदंर कली,अब थोड़ा और बड़ी हुई तो बाबा ने पढ़ने के लिए स्कूल भेजा, मुझे स्कूल जाते हुए गाउँ वालो ने देखा,बोले भाई सहाब बेटी को पढ़ा लिखा के क्या करना है, आखिर शादी होने के बाद चुलाचौका ही तो फूंकना है, तब बाबा ने पास बुलाया औरबड़े प्यार से  मेरी पीठ थापथपायी, और पूरे गाउँ को अपने पास बुला के ये बात बताई,बेटियों को पढ़ा लिखा के इनके मान बढ़ाना है, इन्हें शिक्षा जैसा हतियार देकर सशक्त और बहुत बडी कलेक्टर  साहिबा बनाना है,बाबा के आंखों में उस सपने को साकार होते देखा, जब में और बड़ी हुई तो मुझे पढ़ने के लिए शहर भेजा,पूरे गाउँ ने विरोध किया बेटी को घर से बहार मत भेजो, बाबा ने एक ही स्वर में कहा इनकी नंन्ही आंखों में सभी कामयाबी के सपने देखो, बेटे को शहर भेजना उस मे कोई बुराई नही, बस बेटी बड़ी क्या हुई उसे शहर भेजा तो सबके लिए परायी वही, दोनों मे कोई भेदभाव न हो तभी बेटी को पढ़ने भेजा, अगर उन्हें भी कुछ बनना है आगे जाके पढ़ लिख के वो सुनेहरा सपना देखा, बोझ नही है बेटिया ये तो घर का मान है, बेटो को जितना प्यार लाड़ दिया बेटी भी तो पिता का अभिमान है,तोड़ दो उन सभी कुनीतियों को जो बेटी को कमजोर बनाता है,हाथ मिलाओ सभी आज बेटे बेटीयों को साथ लेकर चले संकल्प भारत नया सजाता है, जय हिंद जय माँ भारती बचपन के आइने में सुदंर चहेरा देखा,बेटी बोझ नही एक नई सोच है
बचपन के आईने में सुंदर सा चेहरा देखा,मैंने हर वक्त माँ के आंचल में प्यार का पेहरा देखा,खुसी मेरे होने की माँ की आंखों में थी,बाबा ने जब ये खबर फ़ोन पे सुनी थी,लोगो मे आस पास बस ये कानाफूसि हुई कि लड़की हुई है,मगर माँ बाबा के लिए मानो प्यार की उमंग जगी है,भाई ने भी खुसी के आँशु बहाये, मेरे बड़े होने तकमेरे लिए  सुंदर सपने सजाये,घर की सबसे प्यारी लाडली थी,नटखट मन भावली थी,अब थोड़ा बडी हुई तो भाई की उंगली और माँ बाबा का सहारा लेके चली,घर के आंगन में मानो जैसे खिल रही हो कोई सुदंर कली,अब थोड़ा और बड़ी हुई तो बाबा ने पढ़ने के लिए स्कूल भेजा, मुझे स्कूल जाते हुए गाउँ वालो ने देखा,बोले भाई सहाब बेटी को पढ़ा लिखा के क्या करना है, आखिर शादी होने के बाद चुलाचौका ही तो फूंकना है, तब बाबा ने पास बुलाया औरबड़े प्यार से  मेरी पीठ थापथपायी, और पूरे गाउँ को अपने पास बुला के ये बात बताई,बेटियों को पढ़ा लिखा के इनके मान बढ़ाना है, इन्हें शिक्षा जैसा हतियार देकर सशक्त और बहुत बडी कलेक्टर  साहिबा बनाना है,बाबा के आंखों में उस सपने को साकार होते देखा, जब में और बड़ी हुई तो मुझे पढ़ने के लिए शहर भेजा,पूरे गाउँ ने विरोध किया बेटी को घर से बहार मत भेजो, बाबा ने एक ही स्वर में कहा इनकी नंन्ही आंखों में सभी कामयाबी के सपने देखो, बेटे को शहर भेजना उस मे कोई बुराई नही, बस बेटी बड़ी क्या हुई उसे शहर भेजा तो सबके लिए परायी वही, दोनों मे कोई भेदभाव न हो तभी बेटी को पढ़ने भेजा, अगर उन्हें भी कुछ बनना है आगे जाके पढ़ लिख के वो सुनेहरा सपना देखा, बोझ नही है बेटिया ये तो घर का मान है, बेटो को जितना प्यार लाड़ दिया बेटी भी तो पिता का अभिमान है,तोड़ दो उन सभी कुनीतियों को जो बेटी को कमजोर बनाता है,हाथ मिलाओ सभी आज बेटे बेटीयों को साथ लेकर चले संकल्प भारत नया सजाता है, जय हिंद जय माँ भारती बचपन के आइने में सुदंर चहेरा देखा,बेटी बोझ नही एक नई सोच है