भटक रहा था मैं बेचारा, तुम मिली,मिल गया सहारा डूब रहा था बीच धार में, हाथ जो पकड़ा,मिला किनारा तुम हो तो जीवन उपवन है, वरना यह मरुस्थल होता तेरे प्यार की खुशबू से अब महक उठा है जीवन सारा .....अर्जुन वरना अपनी धर्मपत्नी को महिला दिवस के अवसर पर समर्पित...