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वैधानिक रुदन- 🕉️🙏🙏.. मेरा मानना हैं कि तात्विक

वैधानिक रुदन-
🕉️🙏🙏..
मेरा मानना हैं कि तात्विक पुरुषों के रुदन हेतु कम से कम एक दिन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
ताकि वे भी "पुरुष रुदन"के दिवस पर अपनी वेदना को समाजोन्मुखी कर के पुरुषों के पाषाण ह्रदय के रूढ़िवादी आवरण का परित्याग कर सके।
अगर ये भी न हो सके तो कम से कम एक हताश पुरुष के लिए एक ऐसा कन्धा जरूर होना चाहिए जिस पर वो अपना माथा टेक के रो सके।
तत्कालीन समाज मे इस मामले स्त्रियों को अपनी अंतर्वेदना प्रकट करने के बहुत से कंधे होते है जैसे- माँ,पिता,भाई,बहन,पति और एक विशुद्ध प्रेमी।
परन्तु एक पुरूष इसलिए अपना रोना नही रोकता की वह बहुत मजबूत और पाषाण ह्रदय वाला है वह इसलिए अपना रोना रोकता हैं कि उसके आसपास कमजोर कन्धों का कारवां होता हैं।
एक पिता कंधे पर अपने बेटे को गांव का पूरा मेला दिखाने में कभी नही थकता परन्तु बेटे के आंखों में आँसू देखकर एक पिता खुद रोने के लिए कन्धा तलाशने लगता हैं।
खैर...मुझे लगता हैं कि पुरुषों के रोने का उचित समय एकांत ही हैं जिसमे वे स्वयं से ही प्रश्न करे और स्वयं ही अपने भावो के अनुरूप उत्तर भी दे।
पुरुषों में रोने की कला वैधानिक होती हैं ये अपनी वेदना से किसी की स्वतंत्रता पर आंच नही आने देते,पुरुष छुप छुपकर,घुट घुटकर,और मुँह पर हाथ रख कर रोते हैं ताकि इनकी रोने की कला गैर-वैधानिक न हो जाये।
मैं समझता हूँ कि जब मुझे जीते जी ये समाज रोने के लिए कन्धा नही दे सका तो मरने के बाद क्या कन्धा देगा।
मुझें खुशी हैं कि मैं तुम्हारी स्मृति में अपनी अंतर्वेदना लिख रहा हूँ और तुम्हारे ग़ैर मौजूदगी में मेरी यही लिखी गयी पंक्तियां मेरे मरने के बाद मुझे कन्धा देगी।
 
कहो! कैसी हो तुम उस जहां में.....
मैं इस जहां से प्रेम अर्पण कर रहा हूँ।
सादर प्रणाम।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

©Durgesh Tiwari..9451125950 वैधानिक रुदन(S🕉️D)
वैधानिक रुदन-
🕉️🙏🙏..
मेरा मानना हैं कि तात्विक पुरुषों के रुदन हेतु कम से कम एक दिन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
ताकि वे भी "पुरुष रुदन"के दिवस पर अपनी वेदना को समाजोन्मुखी कर के पुरुषों के पाषाण ह्रदय के रूढ़िवादी आवरण का परित्याग कर सके।
अगर ये भी न हो सके तो कम से कम एक हताश पुरुष के लिए एक ऐसा कन्धा जरूर होना चाहिए जिस पर वो अपना माथा टेक के रो सके।
तत्कालीन समाज मे इस मामले स्त्रियों को अपनी अंतर्वेदना प्रकट करने के बहुत से कंधे होते है जैसे- माँ,पिता,भाई,बहन,पति और एक विशुद्ध प्रेमी।
परन्तु एक पुरूष इसलिए अपना रोना नही रोकता की वह बहुत मजबूत और पाषाण ह्रदय वाला है वह इसलिए अपना रोना रोकता हैं कि उसके आसपास कमजोर कन्धों का कारवां होता हैं।
एक पिता कंधे पर अपने बेटे को गांव का पूरा मेला दिखाने में कभी नही थकता परन्तु बेटे के आंखों में आँसू देखकर एक पिता खुद रोने के लिए कन्धा तलाशने लगता हैं।
खैर...मुझे लगता हैं कि पुरुषों के रोने का उचित समय एकांत ही हैं जिसमे वे स्वयं से ही प्रश्न करे और स्वयं ही अपने भावो के अनुरूप उत्तर भी दे।
पुरुषों में रोने की कला वैधानिक होती हैं ये अपनी वेदना से किसी की स्वतंत्रता पर आंच नही आने देते,पुरुष छुप छुपकर,घुट घुटकर,और मुँह पर हाथ रख कर रोते हैं ताकि इनकी रोने की कला गैर-वैधानिक न हो जाये।
मैं समझता हूँ कि जब मुझे जीते जी ये समाज रोने के लिए कन्धा नही दे सका तो मरने के बाद क्या कन्धा देगा।
मुझें खुशी हैं कि मैं तुम्हारी स्मृति में अपनी अंतर्वेदना लिख रहा हूँ और तुम्हारे ग़ैर मौजूदगी में मेरी यही लिखी गयी पंक्तियां मेरे मरने के बाद मुझे कन्धा देगी।
 
कहो! कैसी हो तुम उस जहां में.....
मैं इस जहां से प्रेम अर्पण कर रहा हूँ।
सादर प्रणाम।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

©Durgesh Tiwari..9451125950 वैधानिक रुदन(S🕉️D)