किसी भी राष्ट्र की उन्नति और रखता उसके राजा अथवा उस पर शासन करने वाले शासक पर निर्भर करती है शासक को अपने राष्ट्रीय एवं प्रजा के हितों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए राष्ट्र की रक्षा के लिए शासक को युद्ध भूमि में स्वयं उतरना पड़ा तो भी उसे कोई संकोच नहीं करना चाहिए रामायण में कहा गया है कि एक राजा होने का अर्थ है सन्यासी होना उसका अपना कुछ नहीं होता सब कुछ प्रजा के रास्ते के लिए होता है जो राजा अपनी प्रजा के लिए कोई भी त्याग नहीं कर सकता वह अपनी प्रजा से कर लेने का भी अधिकार नहीं है राजा दशरथ ने श्रीराम को राज धर्म की शिक्षा देते हुए कहा है कि एक राजा की मूल शक्ति दंड नहीं है बल्कि न्याय अन्याय जो पक्षपात से रहित हो शासक को अपने हर निर्णय से एक आदर्श स्थापित करना चाहिए क्योंकि जैसा राजा होता है प्रजा भी अपने राजा को देखकर वैसा ही आचरण करती है मदद से पुराण में कहा गया है कि राजा को शिकार मध्य पान तथा धोत्र कीड़ा का परित्याग कर देना चाहिए क्योंकि राजा में उन सभी दुर्गुणों के उपस्थित होने पर राष्ट्रीय को बड़ी हानि का सामना करना पड़ता है राजा को ना ज्यादा कठोर और ना ज्यादा कोमल हृदय होना चाहिए बल्कि जो राजा समय पर मृदुल तथा समय पर कठोर हो जाता है वह सभी लोगों पर विजय प्राप्त कर लेता है विदुर नीति के अनुसार राजा को देश की परिस्थितियों के विषय में संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए साथ ही उसे अपने राजकोष के विषय में भी पूर्ण ज्ञान भान होना चाहिए जिससे कि वह अपव्यय पर अंकुश लगाया जा सके आधुनिक समय में ना राजा है और ना वैसे राजतंत्र परंतु आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी जो शासक है अतः जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं उनमें एक आदर्श राजा जैसे ही सभी गुण होने चाहिए तभी लोकतंत्र कल्याणकारी राजा के रूप में स्थापित हो सके ©Ek villain # आदर्श नेतृत्व #26/11