नीलाम्बर की स्याह तन्हा राते, तरसती बरसती सी पूरी रैन जागे, अभावों वंचितों का दौर हो जब चहुँओर क्यो कहलाते वो अभागे, स्वप्निल सरोबार हो तृष्णाएँ पर अधूरी इच्छायें कालग्रास बन जाये, वीरानी सी वो तन्हा रातें, बन भक्षी उन बेबस मासूमों को खा जाये, विक्षिप्त विपदाओं के हो शिकार, बर्बस ही क्यो वज्रापात उन पर गिराए वो भोली सी शांत स्वभाव हो मूक उदर पर रख पत्थर चश्म नित बहाये, दिन तो बीत जाता पर रात बिरहा बैरी बेबसी में न कट पाये, नयन बस दृश्य हो,मन विचलित स्व से बस कुक्षिप्त हो जाये। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-93 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6-8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।