रेत की घड़ी रेत ⌛फिसलती जाती है, हम वही के वही है, नतीजा उसकी कमी की , रेत तेज चलती थी, हम सोचते कि इतनी जल्दी क्यों गुजर रही है, आज वहीं रेत गुजरें, गूजर न रहीं हैं , रेत ⌛फिसलती जाती है, जैसा हम चाहते हैं वैसा वो नहीं, जैसा वो चाहतें हैं वैसा हम नहीं , घड़ी रूकती नहीं है बस अब यहाँ चलतीं नहीं है । Manorama Shaw✍ #Waqt #manoramaShaw #mypoetryandlearningLovers #रेत_की_घड़ी