आज का बचपन जाने कहाँ खोगया है अस्तित्व इसका कम्प्यूटर में विलीन हो गया है जो विचरता था खुले आसमान के नीचे जो खेलता था पवन की मस्त मौजों से फैलाकर बाहें समेट लेता था जहाँ की सारी खुशियाँ बढ़ाकर हाथ छू लेता था आँसमान की बुलंदियाँ जो झगड़ता था, रूठता था, मानाता था, हंसता था, रोता था, खेलता था साथ अन्य बचपनों के जो कहता था अपनी भावनाओ को अपने अपार मित्रों के समूहों से भावनाओं का वह समंदर आज सिमट कर एक बूँद हो गया है। आज का बचपन...........................विलीन हो गया है हो गया है कैद एक बंद कमरे में हो रहा आहत ए.सी., कूलर,पंखे की हवा के थपेड़ों से फैलाकर बाँह एकांत,उदासी मायूसी समेटता है बड़ाकर हाथ रिमोट और कीपैड के बटनों को दबोचता है। हाँ उड़ता है-3, आज वो अंतरिक्ष की असीम ऊँचाईयों में पर कहाँ कंम्पयूटर के बंद डिब्बे में आज इसके रिश्ते मित्र टी.वी. कंम्प्यूटर, वीडियो गेम है। ये आधुनिक बचपन है जो मशीन हो गया है जो भावना हीन, उमंगहीन हो गया है। आज का बचपन................. ........विलीन हो गया है। उठो जागो 'ए बचपन' इस चिरनिन्द्रा से और समेटो और जुड़ जाओ मित्रों के समूहों से उड़ो आकाश में, साँस लो खुली हवा में फैलाकर बांह बढ़ाकर हाथ जीवित कर दो दफ्न बचपन को नई उड़ान, नई उमंग,नई मुस्कान दो प्रौण हो चले भारत को। और लौटा दो पुर्न बचपन भारत का भारत को । पारुल शर्मा आज का बचपन जाने कहाँ खोगया है अस्तित्व इसका कम्प्यूटर में विलीन हो गया है जो विचरता था खुले आसमान के नीचे जो खेलता था पवन की मस्त मौजों से फैलाकर बाहें समेट लेता था जहाँ की सारी खुशियाँ बढ़ाकर हाथ छू लेता था आँसमान की बुलंदियाँ जो झगड़ता था, रूठता था, मानाता था, हंसता था, रोता था, खेलता था साथ अन्य बचपनों के