मैं लिखता रहा अश्क धोते रहे। सफे किस्मत के खुद पे रोते रहे। हम सुनाते रहे दास्तां दिल की अपनी। रात सारी सिर कंधे पे रख वो सोते रहे। उन्हें लगता था हम जिंदा है पर थे नहीं। अपनी ही लाश हम कंधों पर ढोते रहे। सुदेश दीक्षित ©Varun Vashisth #sadak