वो पहली अभी तक,बात याद है दिसंबर के महिने में मिले थे, वो दोपहर याद है वो मिलन, जन्म से कम नही था खुशी ही, खुशी थी, गम नही था फिर अचानक वक्त,बदलने लगा वक्त के साथ तू भी,बदलने लगी अभी तक मुझे वो,पहली फोन याद है दिसंबर के महिने में मिले थे वो दोपहर याद है फिर कुछ लोग मेरा गुरूर ले गए मेरे पास से मेरा,कोहिनूर ले गए अफसोस मुझे दिल लगाने का है अचानक ये तेरे,बदल जाने का है वो सारे कसमे वादे, तू तोड़ गई तड़पता हुआ अकेला, छोड़ गई हांँ मुझसे दूर तेरी, तकदीर बनी है किसी और हाथों में तेरी,लकीरे बनी है वो पहली वाली फोन याद है दिसंबर के महिने में मिले थे, वो दोपहर याद है तेरे हाथों में,मेरा भी नाम लिखा है तू गौर से देख प्रभु राम ने वहीं पर मेरे हर सांस का हिसाब लिखा है जो ये लिखा है,उसको सब देखेंगे एक तुमसे ही उसकी किस्मत दुर लिखी है तेरे मुंह से निकली हर बात याद है दिसंबर के महिने में मिले थे वो दोपहर याद है ©a æbhîßhêk ßïñgh दिसंबर की दोपहर #dusk