आख़िरी कोशिश भी नाकाम हुई, एक उम्र थी वो भी तमाम हुई, दिन ढ़ल गया पता न चला, अभी तो सुबह थी अब शाम हुई, ज़िन्दगी मारती रही पल-पल, मौत तो बेवज़ह बदनाम हुई, हाल-ए-दिल लिखा जिस पर, वो चिट्ठियां फक़त गुमनाम हुई, कभी रहते थे दर-ओ-बाम में जो, उनकी हस्ती भी अब बेनाम हुई, बात जो दिल ने छुपाई अबतक, हटा पर्दा तो सर-ए-आम हुई, ज़िस्म रखते थे छुपाकर 'गुंजन', नुमाईश अबकी खुले-'आम हुई, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #आख़िरी कोशिश भी#