रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया वो यूँ गया कि बाद-ए-सबा याद आ गई एहसास तक भी हम को दिला कर नहीं गया यूँ लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा जाते हुए चराग़ बुझा कर नहीं गया बस इक लकीर खींच गया दरमियान में दीवार रास्ते में बना कर नहीं गया ये गिला ही रहा उस की ज़ात से जाते हुए वो कोई गिला कर नहीं गया ##शहजाद अहमद #Lights