अख्ज़-ए-अदा जो मेरा था, उसने भी ग़फालत कर दी। ख़ामोशी मेरी थी, बे-दर्द उसने भी बग़ावत कर दी। आईने में क्या तुझसे आज़माईश करते ए-दोस्त, आशुफ़्ता-ए-आशिक़ी मे हमने फिर गुस्ताख़ी कर दी। गुस्ताख़ी..! #अख्ज़-ए-#अदा जो मेरा था, उसने भी ग़फालत कर दी। #ख़ामोशी मेरी थी, #बे-दर्द उसने भी #बग़ावत कर दी। #आईने में क्या तुझसे #आज़माईश करते ए-दोस्त, #आशुफ़्ता-ए-आशिक़ी मे हमने फिर #गुस्ताख़ी कर दी। #khnazim