ख़त्म करो ये वहशत का धरना जाने दो शिकवों के पहाड़ों से इश्क़ का झरना जाने दो सिर्फ़ तुम्हारे खातिर इस महफ़िल में हूँ अर्सों से पर अब लग रहा है फज़ूल है ठहरना जाने दो ये शायरी, ये नज़्म तुम्हारे ही लिए है सुनलो, समझ जाओ तो ठीक है, खैर वर्ना जाने दो.. ©Gaurav jaane do.. #grv_writes