बेसन के एक लड्डू में सारा दिन काट लेती है। लेकिन अपनी बचत को घर में ही बाँट लेती है। घर में किसी के एक छोटी बड़ी बिटिया हो तो! वह तो मुस्कुराकर सबके दर्द छाँट लेती है। बेशक़ सहज न हो कुछ भी घर में उसके लिए! फ़िर भी तो वह मन के टूटे तार गाँठ लेती है। दीवानी हुई तो फिर दीवानगी की हद तक हो छोड़कर महल पेड़ के नीचे उम्र काट लेती है। बस मोहब्ब्त करने की इज़ाज़त चाहती है। मिलती नहीं इज़ाज़त तो चाहत साँठ लेती है। दिल का आलम कोई पूछकर देखे तो उसका! वह तन्हाई में भी पंछी' एहसास पाट लेती है। बेसन के एक लड्डू में सारा दिन काट लेती है। लेकिन अपनी बचत को घर में ही बाँट लेती है। घर में किसी के एक छोटी बड़ी बिटिया हो तो! वह तो मुस्कुराकर सबके दर्द छाँट लेती है। बेशक़ सहज न हो कुछ भी घर में उसके लिए! फ़िर भी तो वह मन के टूटे तार गाँठ लेती है।