यूँ भी तमाम शहर का सर पे उधार है ग़ालिब पे था जो भूत वो हम पर सवार है मै भी किसी का ख़्वाब हूँ मेरे भी ख़्वाब हैं हर कंपनी का अपना अलग इश्तहार है मरना भी कोई सस्ता नहीं है बड़े मियां दो गज़ कफ़न का दाम भी अब दो हज़ार है ये क़ीमती लिबास बड़े काम आएगा अब भीक मांगना भी अलग कारोबार है दो दिन के इश्क़ ने चलो ये तो बता दिया ये दर्दे सर नहीं है दिमाग़ी बुखार है। हसीब सोज़ ©J S T C bukhar hai #Love