काशी के हर घाट हर्ष की गूँज और रंगों से रंगे हैं, एक उसे छोड़ कर जो चिताओं के राखों से सजे है, खूबसूरती उसकी की वो हर अंतिम सफ़र देखती है, वहाँ लोग सज कर आते और वो सुंदर शववस्त्र देखती है, देखा तो ढेरों लकड़ियों के में तराजू भी रखा जाता है, किसके हिस्से कितनी लगी हर वो हिसाब रखा जाता है , कोई शोक नहीं बस मृत्यु से मोक्ष तक का सफ़र देखा है, कल से पहले तक खुद को इस सच्चाई से बेख़बर देखा है, सोचा था ये सब देखना मेरे लिए आसान नहीं होगा, मगर देखा करीब से तो अपना हर डर बेअसर देखा है, मणिकर्णिका की सुबह और मैंने चिताओं को जलते देखा है, किसी अपने के लौट आने का विश्वास हर पल में मरते देखा है, अच्छा था महा श्मशान में अंतिम सफ़र का हिस्सा बन जाना , इस कभी ना खत्म होने के दौर का एक छोटा किस्सा बन जाना। -Shubhra Tripathi :) ©Ibrat मणिकर्णिका महा श्मशान