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संदिग्ध हो चुके हो तुम, समरूप दैत्य! भय और आक्रोश

संदिग्ध हो चुके हो तुम, समरूप दैत्य!
भय और आक्रोश से भरी धूल 
हां, विध्वनशक सा दर-दर गिरते हो 
अरे किया क्या है तुमने केवल विध्वंस
जग का? नहीं स्वयं का!
आज पशु मोह से ग्रस्त हो तुम 
मानो वही मानव हो 
और मानव- हां दयामय पशु!
मानव जागो, मानव सा जागो 
नींद नहीं मगर भूख त्यागो
पाश्विकता सहलाना बंद करो 
अरे गगन की वायु, ज़रा चमन दो,
इन्हें भी सुकून, ज़रा अमन दो 
मोह मात्र नहीं, अधिकार है
विध्वंस रोकना!
अगर गिर जाए जमीन कभी 
और मृत हो जाए वर्ण सभी 
तो अनुवाद है, इसे भी 
'ग्लोबल वॉर्मिंग' न कहना! संदिग्ध हो चुके हो तुम, समरूप दैत्य!
भय और आक्रोश से भरी धूल 
हां, विध्वनशक सा दर-दर गिरते हो 
अरे किया क्या है तुमने केवल विध्वंस
जग का? नहीं स्वयं का!
आज पशु मोह से ग्रस्त हो तुम 
मानो वही मानव हो 
और मानव- हां दयामय पशु!
संदिग्ध हो चुके हो तुम, समरूप दैत्य!
भय और आक्रोश से भरी धूल 
हां, विध्वनशक सा दर-दर गिरते हो 
अरे किया क्या है तुमने केवल विध्वंस
जग का? नहीं स्वयं का!
आज पशु मोह से ग्रस्त हो तुम 
मानो वही मानव हो 
और मानव- हां दयामय पशु!
मानव जागो, मानव सा जागो 
नींद नहीं मगर भूख त्यागो
पाश्विकता सहलाना बंद करो 
अरे गगन की वायु, ज़रा चमन दो,
इन्हें भी सुकून, ज़रा अमन दो 
मोह मात्र नहीं, अधिकार है
विध्वंस रोकना!
अगर गिर जाए जमीन कभी 
और मृत हो जाए वर्ण सभी 
तो अनुवाद है, इसे भी 
'ग्लोबल वॉर्मिंग' न कहना! संदिग्ध हो चुके हो तुम, समरूप दैत्य!
भय और आक्रोश से भरी धूल 
हां, विध्वनशक सा दर-दर गिरते हो 
अरे किया क्या है तुमने केवल विध्वंस
जग का? नहीं स्वयं का!
आज पशु मोह से ग्रस्त हो तुम 
मानो वही मानव हो 
और मानव- हां दयामय पशु!
amargupta4255

amar gupta

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