जय महाकाल!!! यथाशक्ति भक्ति करि, शिव शंभू, बाघम्बरी उचित हो उसके देना फल मुझको | वो मेरे मन का होगा, या नहीं मन का होगा सहज ही प्रभु मेरे, स्वीकारूंगा उसको || जैसे पूजा तेरी किया, देके तन अरु हिया वैसे ही आराध्य मैं मानूंगा तुझको | और जब भी जन्मूं यहाँ, तिस पर मानव बनूं यहाँ करूंगा समर्पित तुझपे खुद को || ©कवि प्रभात कविता कोश