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होती सबकी है फिर भी अकेली है जितनी गंभीर उतनी ही अ

होती सबकी है फिर भी अकेली है
जितनी गंभीर उतनी ही अलबेली है!

खिलाड़ी सी ये घर-घर खेली है,
ज़िंदगी अचरज भरी एक पहेली है!

कभी छोटी सी बात पर रूठी सहेली है,
कभी जटिल उलझनें हँस कर झेली हैं!

कभी फीकी सी कभी रस भरी जलेबी है,
विधवा सी लगे, कभी दुल्हन नई नवेली है!

कभी ऐसे बिखरे जैसे मिट्टी की ढेली है
कभी ऐसे खड़ी हो जैसे विशाल हवेली है! होती सबकी है फिर भी अकेली है
जितनी गंभीर उतनी ही अलबेली है!

खिलाड़ी सी ये घर-घर खेली है,
ज़िंदगी अचरज भरी एक पहेली है!

कभी छोटी सी बात पर रूठी सहेली है,
कभी जटिल उलझनें हँस कर झेली हैं!
होती सबकी है फिर भी अकेली है
जितनी गंभीर उतनी ही अलबेली है!

खिलाड़ी सी ये घर-घर खेली है,
ज़िंदगी अचरज भरी एक पहेली है!

कभी छोटी सी बात पर रूठी सहेली है,
कभी जटिल उलझनें हँस कर झेली हैं!

कभी फीकी सी कभी रस भरी जलेबी है,
विधवा सी लगे, कभी दुल्हन नई नवेली है!

कभी ऐसे बिखरे जैसे मिट्टी की ढेली है
कभी ऐसे खड़ी हो जैसे विशाल हवेली है! होती सबकी है फिर भी अकेली है
जितनी गंभीर उतनी ही अलबेली है!

खिलाड़ी सी ये घर-घर खेली है,
ज़िंदगी अचरज भरी एक पहेली है!

कभी छोटी सी बात पर रूठी सहेली है,
कभी जटिल उलझनें हँस कर झेली हैं!
anitasaini9794

Anita Saini

Bronze Star
New Creator