अविस्मरणीय,अधबुद, अलौकिक हो तुम अमावस्या की रात की रोशनी हो तुम।। मधुशाला की महकती खुशबू हो तुम मूर्छित पड़े व्यक्ति के लिए संजीवनी हो तुम।। जड़, तना, टहनी,कली हो तुम सूरज का उजाला,चांद की चांदनी हो तुम।। शब्द हो,निशब्द हो,वाणी हो तुम बुझे स्वरों के लिए रागिनी हो तुम।। द्वंद हो,द्वेष हो,युद्ध हो,शांति हो तुम जो बच गए उनके लिए अर्धांगिनी हो तुम।। #Manish Kumar Savita #अविस्मरणीय