तमाम उम्र हमने लगा दी दूसरों की कमी गिनाने में, काम की चीज़ें नदारद की हमने अक़्सर जी चुराने में। कभी ख़ुद लुट गए तो कभी ताक लगा कर बैठे रहे! तुम अक़्सर दूसरों के आशियाने लूट कर लाने में? मोहब्बत की न इश्क़ किया वफ़ा ढूंढते रहे फिर भी! अक़्सर प्यार के नाम पर तुम अपना जी बहलाने में। अब आया रमज़ान तुम ख़ुदा को याद कर तो रहे हो! तौबा करलो अपने गुनाहों से जो पाए दिल दुखाने में। तुम हश्र के दिन तो सच कहने की तौफ़ीक़ रखना! "पाठक" अब दिमाग़ न लगाना किसी को बहकाने में। शिक्षा का निश्चित उद्देश्य एवं स्तर भी तय किया जाना चाहिए। किस स्तर के बालक में कितनी योग्यता होनी चाहिए। आज स्नातक भी अच्छा पत्र नहीं लिख सके,तो क्या यह सम्पूर्ण देश का अपमान नहीं है? एक चपरासी की नौकरी के लिए एमबीए, इंजीनियर लाइन में लगें और किसी को भी शर्म नहीं आए! वाह, शिक्षा अधिकारियों को डूबकर मर जाना चाहिए। नकली शिक्षा के सहारे 90-95 प्रतिशत नम्बर प्राप्त करने की होड़ और फिर भी निकम्मेपन का रेकॉर्ड छात्र का तो जीवन उजाड़ देता है। आज कॉलेज, स्कूलें, अधिकारी मिलकर किस प्रकार का ‘शिक्षा उद्योग’ चला रहे हैं, कौन नहीं जानता। 😊☕🍟🙏💕🍟☕ आप भी सोच कर देखिए!