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इश्क़ की गलियों में देखा, मोहब्बतें नीलाम होती

इश्क़ की  गलियों में  देखा, मोहब्बतें  नीलाम  होती हैं,
वफ़ा  थी  बहुत  महंगी  पर, रुसवाईयाँ  आम  होती है,

इन्हीं गलियों में इश्क़ का, सरेआम  इश्तिहार  देखा है,
इश्क़ में मुब्तिला  आशिकों को,  बेबस लाचार देखा है।

हमनें भी दौरा किया था, इन गलियों का अब कैसे कहें,
आए थे  इश्क़ फरमाने, और हम किसी काम के ना रहे,

इश्क़ पर  इख़्तियार नहीं, पर लोग  नाकामयाब होते हैं,
फँसकर  इश्क़ के  भँवर में, फिर  जिन्दगी  भर रोते हैं। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार...📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-22 में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।

💫 प्रतियोगिता ¥22:- इश्क़ की गलियों में
इश्क़ की  गलियों में  देखा, मोहब्बतें  नीलाम  होती हैं,
वफ़ा  थी  बहुत  महंगी  पर, रुसवाईयाँ  आम  होती है,

इन्हीं गलियों में इश्क़ का, सरेआम  इश्तिहार  देखा है,
इश्क़ में मुब्तिला  आशिकों को,  बेबस लाचार देखा है।

हमनें भी दौरा किया था, इन गलियों का अब कैसे कहें,
आए थे  इश्क़ फरमाने, और हम किसी काम के ना रहे,

इश्क़ पर  इख़्तियार नहीं, पर लोग  नाकामयाब होते हैं,
फँसकर  इश्क़ के  भँवर में, फिर  जिन्दगी  भर रोते हैं। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

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