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न जाने कितनी बार खोया हूँ मैं खुद की ही खोज में, ख

न जाने कितनी बार खोया हूँ मैं खुद की ही खोज में, खुद को खोजता रहा मैं कभी शहर में,कभी गाँव में, पक्षियों के कलरव में,नदी की खामोशी में,आकाश के विस्तार में।हर बार खोज अधूरी रही मेरी,मैं हर बार वापिस लौटा हूँ  खुद के ही एकांत में।
                         खुद की खोज
न जाने कितनी बार खोया हूँ मैं खुद की ही खोज में, खुद को खोजता रहा मैं कभी शहर में,कभी गाँव में, पक्षियों के कलरव में,नदी की खामोशी में,आकाश के विस्तार में।हर बार खोज अधूरी रही मेरी,मैं हर बार वापिस लौटा हूँ  खुद के ही एकांत में।
                         खुद की खोज