उस अँधेरे के सन्नाटे में कोई पीछा कर रहा था। रूठे को तो मना लिया जाये आसान है बेमतलब रूठे को मनाने का कभी मन नहीं माना था शायद उसी का साया था दबे पाँव मेरा पीछा कर रहा था और मुझे उस साये को मनाने की ज़िद कर रहा था | ये वो साया है जो अतीत में गलत फहमी या कह लो एक तरफी प्रें से भरा है इसीलिये ये शब्द आज भी आधा साया प्रेत का लेकर मेरे पीछे घूम रहा है शायद | तो क्या ये तेरे बेवजह रूठने की एेंठन लिये घूम रहा है या तुझसे कह न पाने के लिये प्रताड़ित कर रहा है | लेकिन मुझे ये साया अब कभी डराता नहीं नहीं क्योंकि ये बहुत बड़ी गलत फहमी का हिस्सा है प्रेत है ये बेवजह ही रूठने वाला प्रेत | ©️hittika #hindi