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भाग-२ मैं चोटी के लाज लड़ा था; पर्वत कोठी छोड़ा था,

भाग-२
मैं चोटी के लाज लड़ा था; पर्वत कोठी छोड़ा था,
भोली, मुनिया की शादी के सपनो को ख़ुद तोरा था।
कहो नाम मैं झूठा हूँ तो, जो मन चाहें जोड़ो से,
कितने घाव परे कानों में; आज़ादी के शोरो से।

मेरे माथे तिलक मिटाने कितने जालिम आते थे,
जिनकी ख़ुदकी गड़ी पड़ी थी, वो ईमान बताते थे।
कितने नालें बंदूको के; पार ज़िगर से गुजरे थे,
तब बड़े बड़े कॉलेज दिल्ली के, गूंगे, बेबस, उजड़े थे।

कहाँ फॅसे थे इंक़लाबी, जब धरना सूखा जाता था,
कहाँ कोई तब झंडा लेकर, संविधान बचाता था।
बरसी कट गए तीस बरस, हर फ़र्ज था ग़ुम रंगरलियों में,
ऐसी आँधी नहीं दिखी थी; तब शाहीनबाग की गलियों में। #शाहीनबाग, kavya Kumari Soumya Patwar Sanjeev Kumar A Boy Ravitanshumishra187
भाग-२
मैं चोटी के लाज लड़ा था; पर्वत कोठी छोड़ा था,
भोली, मुनिया की शादी के सपनो को ख़ुद तोरा था।
कहो नाम मैं झूठा हूँ तो, जो मन चाहें जोड़ो से,
कितने घाव परे कानों में; आज़ादी के शोरो से।

मेरे माथे तिलक मिटाने कितने जालिम आते थे,
जिनकी ख़ुदकी गड़ी पड़ी थी, वो ईमान बताते थे।
कितने नालें बंदूको के; पार ज़िगर से गुजरे थे,
तब बड़े बड़े कॉलेज दिल्ली के, गूंगे, बेबस, उजड़े थे।

कहाँ फॅसे थे इंक़लाबी, जब धरना सूखा जाता था,
कहाँ कोई तब झंडा लेकर, संविधान बचाता था।
बरसी कट गए तीस बरस, हर फ़र्ज था ग़ुम रंगरलियों में,
ऐसी आँधी नहीं दिखी थी; तब शाहीनबाग की गलियों में। #शाहीनबाग, kavya Kumari Soumya Patwar Sanjeev Kumar A Boy Ravitanshumishra187
abhijeetdey2871

Abhijeet Dey

New Creator