मैं अदम्य अद्भुद अनुपम अतुलित अलौकिक अंश बनूँ जिस सरोज में नित नए पंकज नवल कड़ी का वंश बनूँ प्राणों में श्वांस समान बहे, ऊर्जा धमनी में बहती हो हर प्रातः परिष्कृत पूर्ण बने, संध्या संरचना रहती हो मैं पूर्ण बनूँ मैं निष्कलंक, कलुषित बंधन को तोडूं मैं मैं निराकार में बस जाऊं, मिथ्या भौतिकता छोडूं मैं मैं विलीन होकर मुझमें, मुझको मुझसे ही जोड़ रहा जो भव बंधन सब मिथ्या थे, एक एक कर तोड़ रहा मैं विलीन होकर मुझमें #dixitg