तू ही तो सखीं सहेली हैं ऐ डायरी तू ही तो कुछ सूल्झी कुछ उल्झी हुई पहेली हैं , तुझसे ही बाते करती हूँ रोज शाम को मिलती हूँ , पढ़ कर यादों के पन्नों को नम सी हो जाती हूँ देखती हैं तू मुझको मैं गुम सी हो जाती हूँ , एक तू ही तो खा़श हैं बिन मतलब के जो साथ हैं Anju 2007 ki sathi