दीवाली का त्योहार आते ही सभी साफ सफाई मैं जुट जाते है , मेरे घर का भी हाल कुछ ऐसा ही था, साफ सफाई के कारण सामान सब इधर - उधर उथल पुथल पढा था, हर चीज अस्त व्यस्त पड़ी हुई थी, आज अपने रूम की अलमारी जमाते वक्त सोचा पुराने कपड़े निकाल के अलग कर दु, इस तरह मैंने अपने पुराने कपड़े निकाल अलग रख दिए सोचा, किसी जरूरतमंद के काम आएँगे, घर की साफ सफाई और सारा पुराना सामान निकाल के अलग हो चुका था और बस अब दिवाली का इंतज़ार था, कि इतने में ही आज सुबह जब मैं बालकनी में बैठे चाय पी ही रही थी, कि अचानक आवाज आती है रेणु की - अब आप सोच रहे होंगे कि ये रेणु कौन है?तो मैं आपको बता दू रेणु उस कबाड़ वाले की बेटी है जो अपना घर चलाने कबाड़ के साथ- साथ कचरा उठाने का भी काम करता ताकि अपने परिवार को 2 वक्त की रोटी खिला सके, रेणु से वैसे कुछ खास रिश्ता नहीं था मेरा वो अक्सर मेरे पुराने कपड़े ले जाया करती थी, और रेणु की आवाज सुनते ही याद आया कि मैंने अपने कुछ कपड़े निकाल के रखे है और मैंने रेणु को आवाज लगायी, रेणु भागते हुए गेट से अंदर आई और बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ पूछा दीदी अपने कपड़े निकाल के रखे है? मैंने हाँ बोल कर वो कपड़े का बैग लेकर आई और रेणु को दे दिया, वो मिलते ही रेणु की खुशी देखते बनती थी आँखो में चमक आ गयी थी और चेहरे पर हंसी मानो उसे देख लग रहा था जैसे किसी ने उसे कुछ नया लाकर कुछ तोहफे में दिया हो. जाते जाते उसने हसते हुए मेरे और मेरे परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं दी, और मैंने भी उसे बदले में दिवाली की ढेर शुभकामनाएं दी, रेणु ने जाने के लिए कदम बढ़ाए ही थे कि उसके हर बढ़ते कदम के साथ मेरे मन में ये ख्याल आ रहा था कि मैं अपनी पुरानी चीजों से किसी को खुशियां कैसे दे सकती हू, यू तो रेणु ने कुछ शिकायत नहीं की थी वो मेरे पुराने कपड़े पाकर भी खुश थी. की तभी मैंने रेणु को रोका और वापस बुलाया वो फिर भागते हुए उसी उत्साह से आई और पूछा और भी कुछ है दीदी - मैंने अंदर जाकर अलमारी से वो ड्रेस निकाला जो नया रखा था सोचा था, दिवाली के दिन पहनूंगी मेरी माँ मुझसे बार बार एक ही सवाल कर रही थी कि तुम ये कहा ले जा रही हो और जवाब बस मेरे पास एक ही था कि कैसे हम पुराने सामान दे दूसरो को खुशियां वो हम खुशी नहीं दे रहे सायद वो सामान खाली कर रहे जो हमारे लिए अब किसी काम का नहीं रहा है, इतना कहते ही मैंने अपना ये ड्रेस जा रेणु को दे दिया, वैसे तो मैं अपने सामान को ले के काफी संकोची सी हूँ और बात कुछ नया देने की आ जाय तो मेरे कदम कभी आगे नहीं बढ़ते पर आज ये फैसला मेरा था तो मुझे कुछ अफसोस नहीं था, नया कपड़े देख रेणु का चेहरा देखने वाला था उसकी खुशी और चहरे की चमक ऐसी थी जो हज़ारों का क्रीम लगा कर भी नहीं आती. वो एक टक हो कर कपड़े को ऐसे निहार रही थी मानो कोई बेश- कीमति हीरा उसके हाथ लगा हो और अब मैंने उसे दिवाली की बधाइयाँ दी और अब दिवाली की बधाइयाँ देते हुए सुकून था, रेणु जा चुकी थी तो मैं भी अंदर अपने काम में लग गयी कुछ समय बाद फिर रेणु की आवाज आती है दीदी बाहर आओ - मैंने बाहर निकल कर देखा तो रेणु अपने हाथो में मिट्टी के दीये और कुछ सामान ले कर आई थी, दिया को देखते ही याद आया कि रेणु ने सुबह बातया था कि उसकी माँ इस बार दिवाली मे दिए बेचने वाली है और उसके हाथ में दिए देख मुझे भी लगा ये बेचने आई है उतने में मैंने रेणु से कहा कि दिये तो हमने खरीद चुके है अगली बार जरूर लेंगे, बदले में रेणु ने मुझे बताया कि दीदी मैं ये दिये बेचने नहीं आपके लिए लायी हू, ये दिये आपकी दी हुई ड्रेस जीतने कीमति तो नहीं है पर छोटा सा उपहार है और उसने दिये और लक्ष्मी जी की मूर्ति मुझे दे दी. दो पल के लिए मेरी आँखे नम जरुर हुई पर रेणु की खुददारी देख सुकून मिला मैंने वो मूर्ति अपने घर के मंदिर मैं रख दी है सोचा है लक्ष्मी जी की पूजा उसी मूर्ति से करेंगे. तो आज मैंने रेणु को अपने हिस्से की थोड़ी सी खुशियां और उसने मुझे बहुत सारा प्यार!!! इस दिवाली हम सभी को रेणु के परिवार जैसे लोगो को मदद करने की जरूरत है हमारी छोटी छोटी मदद उनके घरो को रोशनी से भर सकती है तो क्या आप इस दिवाली एक रेणु की मदद करने तैयार है??? #diwali #LifeChangingBookOnDiwali #Acga #Lights